Friday, August 7, 2009
प्यार से मेरे ज़ख़्म भरते हैं
इश्क़ का आज इम्तेहां तो नहीं
हंसके कहता है कुछ हुआ तो नहीं
बावली आस पूछती सबसे
तुमसे कुछ कहके वो गया तो नहीं
प्यार से मेरे ज़ख़्म भरते हैं
दुखके-काटे की यह दवा तो नहीं
उसकी सूरत किसी ने कब देखी
हममें तुममें ही वो छुपा तो नहीं
सबकी आंखें मुझी पै ठहरी हैं
कौन हूं मैं उन्हें पता तो नहीं
जो किसी शख्स से नहीं मिलता
कहिए ‘ज़ाहिद’ वही खुदा तो नहीं
डॉ. रामार्य
1 दुख के मारे
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उसकी सूरत किसी ने कब देखी
ReplyDeleteहममें तुममें ही वो छुपा तो नहीं
bahut achhe behatreen
kumar koutuhal