प्रीत हुई तो दुख ने घेरा ,दोनों मीत बने ,
सचमुच ऐसे बनी गजल ऐसे ही गीत बने।
कब देखा करते हैं सपने , क्रूर-सत्य ,आघातें ,
कब पक्षी बाजों के भय से नभ पर ना उड़ पाते ,
कब खिलने से फूल कभी करते हैं आनाकानी
जितनी धूप दहकती जंगल उतने ही हरियाते।
घायल सांसें इस आशा से टूट नहीं पातीं
हारी हुई बाजियां शायद इक दिन जीत बनें।
Thursday, September 24, 2009
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हारी हुई बाजियां शायद इक दिन जीत बनें।
ReplyDeleteअच्छा गीत...आशा का संचार करता हुआ...
बधाई स्वीकारें इतनी सुंदर रचना के लिए
ReplyDeleteहर एक शब्द अपनी कहानी स्वयं कह रहा है
एक अच्छी सोच वाली आशावादी रचना
जितनी धूप दहकती जंगल उतने ही हरियाते।
ReplyDeleteअद्भुत बिंब
कब खिलने से फूल कभी करते हैं आनाकानी
ReplyDeleteजितनी धूप दहकती जंगल उतने ही हरियाते।
कितना सुन्दर भाव है .... कितनी आशा है इन शब्दों में
naya andaaj, waah....
ReplyDeletevivj2000.blogspot.com