Thursday, September 24, 2009

ऐसे बनी ग़ज़ल ऐसे गीत बने

प्रीत हुई तो दुख ने घेरा ,दोनों मीत बने ,
सचमुच ऐसे बनी गजल ऐसे ही गीत बने।

कब देखा करते हैं सपने , क्रूर-सत्य ,आघातें ,
कब पक्षी बाजों के भय से नभ पर ना उड़ पाते ,
कब खिलने से फूल कभी करते हैं आनाकानी
जितनी धूप दहकती जंगल उतने ही हरियाते।
घायल सांसें इस आशा से टूट नहीं पातीं
हारी हुई बाजियां शायद इक दिन जीत बनें।

5 comments:

  1. हारी हुई बाजियां शायद इक दिन जीत बनें।

    अच्छा गीत...आशा का संचार करता हुआ...

    ReplyDelete
  2. बधाई स्वीकारें इतनी सुंदर रचना के लिए
    हर एक शब्द अपनी कहानी स्वयं कह रहा है
    एक अच्छी सोच वाली आशावादी रचना

    ReplyDelete
  3. जितनी धूप दहकती जंगल उतने ही हरियाते।

    अद्भुत बिंब

    ReplyDelete
  4. कब खिलने से फूल कभी करते हैं आनाकानी
    जितनी धूप दहकती जंगल उतने ही हरियाते।

    कितना सुन्दर भाव है .... कितनी आशा है इन शब्दों में

    ReplyDelete