Wednesday, May 6, 2009

नशा था या प्यार था !

चढ़कर उतर गया वो नशा था या प्यार था !
हंसकर मुकर गया वो नशा था या प्यार था !

तन्हाइयों मंे भर रहा था , सैकड़ों उड़ान ,
मिलकर बिखर गया वो नशा था या प्यार था !

जो गुनगुना रहा था रगों की रबाब पर ,
छुपकर किधर गया वो नशा था या प्यार था !

मीठे थे पल खुमार के ,लेकिन खटास से ,
सारा असर गया वो नशा था या प्यार था !

सच्चाइयों की रेत से पानी गुरूर का ,
रुककर निथर गया वो नशा था या प्यार था !

‘ जाहिद‘ थी खुली बांह कि हर वक़्त का झौंका ,
सर रर सरर गया वो नशा था या प्यार था !
649/16-17 04 09



. माफ़ करना !

तुम्हारी हद के अंदर आ गया था ,माफ़ करना !
अकेलेपन से मैं घबरा गया था , माफ़ करना !

तुम्हारा नाम ही बस याद था सारे सफर में ,
शिनाख़त में उसे दोहरा गया था ,माफ़ करना !

मैं कच्ची उम्र की अमराई का बेनाम पत्थर ,
तुम्हारे हाथ बरबस आ गया था , माफ़ करना !

किसी तारीख़ कि रदफदो अमल की बात मत कर ,
था मुज़रिम वक्त जो पकड़ा गया था , माफ़ करना !

बिखरकर पंखुरी ही आंख में आंसू लिये बोली ,
सबा के साथ झौंका आ गया था , माफ़ करना !

किसी हमशक्ल, हम आवाज़, हमनाम के पीछे,
मैं ही बेसाख्ता दौड़ा गया था , माफ़ करना !

खड़े हैं और भी ‘ ज़ाहिद ‘ कतारों में उमीदों की ,
मैं शायद वक्त ज्यादा खा गया था , माफ करना !
020509/050509

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