Friday, April 17, 2009

तुम कहां हो ?

मेरी हर इच्छा पर
दूध की तरह होंठों से लग जाने वाले पलों ?
धूलभरी किलकारियों से धूम मचाते हंसतेगाते ,
नौनिहाल कलों !
तुम कहां हो ?

गुलाबी रेशम सी हर पल फिसलती
बदन से लिपटी ,
मचलती ,
सुर्ख चेहरे से टपकती ,
लजाती हुई ,
धड़कनों में छुई मुई सी सकपकाती हुई-
अंधेरांे में भी दिखनेवाली राहों
दुखोंको प्यार से लड़ियाती बाहों ,
तुम कहां हो ?

धार ने बहते बहते जिसे छुआ था ,
उन बंजर पड़े खेतों में भी कुछ हुआ था ,
पनघट पर पंछीटे गए थे कितने चेहरे
किसी घाट पर कहां थे तब कोई पहरे ?
किनारों को डू आनक की वे अलमसत होड़ें ,
कभी हमने कभी तुमने जीती थी
हमारे हौसलों पर तब वह जो बीतती है
कहां बीती थी ?

हवा होते दिनों की लम्बी है यादें
प्रयासों के बावजूद अधूरे रह जाने की फरियादें
तुम कहां हो ?

तुम कहां हो जो कहते थे -
सब ठीक हो जाएगा
तुम कहां हो जिसे पता था
कि सुनहरा कल आएगा-
मोम की तरह हुई मशालों!
तुम कहां हो-
गरजती हुई दिशाओं ,
आकाश छूते उबालों

तुम कहां हो जहां से बिखरी थी यात्राएं
मैं अब भी खड़ा हूं उस मोड़ पर ,
उसी मोड़ पर जहां से मुड़ गया हे राजमार्ग
मुद्रिका होकर
अकस्मात रोके गये जुलूस को प्रतिबंध का झांसा देकर ,
लम्बीयात्राओं में गए अपने लोग ,
अब इधर नहीं आते
तुमकहां हो भोले क्षणों !
क्या इस मोड़ से कभी नहीं जाते ?
तुम कहां हो ?
तुम कहां हो ?

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