Sunday, April 19, 2009

भारत के पड़ौसी देश

कहते हैं पड़ोसी अच्छे हों तो समझना चाहिए कि हम स्वर्ग में हैं । हम कहां है यह देखने के लिए हमें अपने पड़ोसियों को पहचानना जरूरी है । हम भारतीय हैं ,कयोंकि हम भारत में रहते हैं । भारत का मस्तिष्क या ललाट है-कश्मीर । कवि फिरदौस ने कश्मीर के बारे में कहा है:’ अगर फिरदौस बर-रू-ए जमीं अस्त । अमी अस्तो , अमी अस्तो , अमी अस्त ।। ’ इसका अर्थ सभी जानते हैं कि जमीन पर अगर स्वर्ग है तो वह यहीं है , यहीं है , यहीं है । तीन बार ’ यहीं है ’ कहने की परम्परा कश्मीर में मुग़लों के साथ चली आई । तीन बार कहने से बात पक्की हो जाती है । इसी प्रकार तीन बार ’’नहीं है , नहीं है , नहीं है ’’ कहने से पहली बात स्वयमेव निरस्त हो जाती है । जिस देश में कश्मीर जैसा स्वर्ग है , उस देश के पड़ौसियों को भी पहचानना जरूरी है । भारत के पड़ौसियों में पहला है उत्तर दिशा में स्थित चीन , जो विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्यावाला देश कहलाता रहा है । चीन ने ही दुनिया में ’’हिन्दी चीनी भाई भाई’’ का नारा दिया और पंचशील के साए में 1962 में कश्मीर अंदर घुसकर युद्ध किया । भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं में फिर तिब्बत है , भूटान है जो भौगोलिक और सांस्कृतिक कारणों से चीन के नजदीक हैं । पूर्व में ’ सोनार बांगलादेश’ है , दक्षिण में ’सोने की नगरी ’ श्रीलंका है और वह समुद्र है जहां से ताज होटल में बिना किसी रोक टोक के आतंकवादी घुस आए थे । और पश्चिम में है पाकिस्तान । यह पड़ौसी हमारे ही शरीर का एक हिस्सा है । बाइ्रबिल में एक कथा है कि एडम की पसली तोड़कर परमात्मा ने ईव बनाई ताकि एडम अकेला और उदास न रहे । पाकिस्तान निर्माण भी अल्लाह की मर्जी औेर आकाओं के अस्तितव की महत्त्वाकांक्षा का पुनर्जन्म है । पूर्व का राजनैतिक भूगोल भी कुछ ऐसा ही है । हमारे भारतीय गणराज्य का वत्र्तमान राज्य है पश्चिमी बंगाल । जाहिर है कि पूर्वी बंगाल भी कहीं होना चाहिए । था पर अब नहीं है । पाकिस्तान बना तो पूर्वी बंगाल बदलकर पूर्वी पाकिसतान हो गया । बाद में ’अच्छे पड़ौेसी के रूप में उसका ’कायाकल्प’ बां्रला देश के रूप में हुआ । ’सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा ’ कहनेवाले पाकिस्तान चले गए और ’आमार सोनार बांगलादेश ’ कहने वाले पूर्वी पाकिसतानी हो गए । कहने को श्रीलंका या सिंहलद्वीप भी हमारे दक्षिणी समाज तमिलियनों का रूपांतरित स्वतं़ राष्ट्र है । इसी पगकार उत्तरपूर्व में नेपाल भारतीय संस्कृति का पोषक स्वतंत्र राष्ट्र है । ’ पशुपतिनाथ ’ वहीं हैं । यह वहीं पशुपतिनाथ है जो ’ विश्वनाथ ’ के नाम से बनारस में बसे हुए हैं । यही पशुपति-विश्वनाथ ’ अमरनाथ ’ के नाम से चीन में रहते हैं । इतना सब होने के बाद तो हमारे स्वर्ग में रहने के विषय में कोई प्रमाण शेष नहीं रहता । परन्तु क्या हम सचमुच स्वर्ग में हैं ? हमारे ’ स्वर्ग कश्मीर ’ में आतंकवादियों के पक्के बंकर बनाए जा चुके हैं ओर सुना है कि सेना , सरकार , मीडिया राजनैतिक दल...सबको पता है कि बन रहे हैं । ’ पशुपतिनाथ ’ के देश में चीन समर्थित माओवादी सैनिकों ने पुजारियों को विस्थापित कर दिया है । माओवाद पूजा को वैसे भी व्यक्तिगत मानता है । मगर ऐसे समय जब सीमाओं पर बंकर बन रहे हों पड़ौस में इस तरह की घटना से चैंकना स्वाभाविक है । सोचना भी प्राकृतिक है कि चीन की यह पहल पाकिस्तान के प्रति दोस्ती ओर पड़ौसी धर्म का उत्कृष्ट नमुना है । उधर बांगलादेश से घुसपैठियों ने ’ चिकननेक’ पर डावनियां बना ली हैं । भारत में जन्मा दाउद पाकिस्तान में बैठकर आतंकवादी गतिविधियां चला रहा है । अमेरिका पर हमला करनेवाला लादेन भी शक है कि अभी भी पाकिस्तान में है । फिर भी अमेरिका पाकिस्तान की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है । बाराक और बुश के ’’नेक इरादों ’’ के बावजूद । अमेरिका के हाथ में तराजू है । वह भारत के पड़ले में संयम रखता है और पाकिस्तान के पड़लें में हथियार । पाकिस्तान अमेरिका की मजबूरी को जानता है इसलिए बंकर बनवाने में उसे कोई डर नहीं है । दो को लड़ाकर तीसरा हमेशा फायदे मंे रहता है - यह हितोपदेश और पंचतं़त्र की बोधकथाएं हमें बताती रही हैं । सौभाग्य या दुर्भाग्य से इककीसवीें सदी के प्रथम दशक की पीढ़ी इसे प्रत्यक्ष देख रही है । लड़ने ओर लड़ानेवालों को अपने अपने हिस्से का फायदा तो मिल रहा है मगर उनका कया जिन्हें फायदा से ज्यादा अमन और चैन चाहिए । ऐसे भी लोग हैं जिन्हें कुछ भी नहीं चाहिए , दो वक्त या एक ही वकत की रोटी चाहिए और जीवन चाहिए । उन्हें क्या मिल रहा है ? मैं आम या खास ’ जनता ’ की बात नहीं कर रहा हूं । जनता नाम की कोई चीज़ इस देश में कहां है ? यहां तो दलों मं बंटे हुए लोग हैं । भाषा , प्रांत , धर्म के नामपर बंटे हुए लोग हैं । कर्मचारी हैं ,अधिकारी हैं , अधिकारियों और कर्मचारियों से काम करा ले’ लोग ’ हैं । मगर जनता नहीं है जिसका जिक्र संविधान करता है । चारों ओर उद्योगपति हैं और उपभोक्ता हैं। धार्मिक संगठन हैं और बेज लगाए हुए अनुयायी हैं । निठल्ले और बतखोर लोग हैं जो अपवाह फैलाते हैं और अपने होने के सबूत इकट्ठे करते हैं । जनता कहां है ? कुलमिलाकर , जरा सोचिए ! हम किस प्रकार और कैसी जगह में हैं ? कैसे पड़ौसी हैं हमारे ? पाकिसतान के साथ अरबी घोड़े हैं , काबुल अफगान है , चीन है , अमेरिका है। हमारे साथ कौन है ? कश्मीर का स्वर्ग , सोने की चिड़िया , पशुपतिनाथ , सोनार बांगला या सोने की लंका ? या फिर सूरदास का वह पद जिसमें वह कहते हैं ’ हमारे हरि हारिल की लकरी ’ या वह प्रसिद्ध गाना जो हमें बताता है -’ दुनिया में नही जिसका कोइ्र्र उसका खुदा है ।’ कौन है हमारे साथ ? देशवासियों के मन में यह विचार आना स्वाभाविक है कि हम रामभरोसे हैं और शायद परलोक में भी हैं । कहां हैं हमारे लोक ? अंततः देश के शासको ओर जनता के सेवकों इस जगह पड़ाव डालकर सोचना चाहिए कि देश को वे खदेड़ते हुए किस तरफ ले जा रहे हैं । जनता अगर है और वह वास्तविक है , मतदाता मात्र नहीं है तो उसे भी सोचना चाहिए कि ऐसे समय उसे क्या करना चाहिए ? डाॅ. आर. रामकुमार ,

Friday, April 17, 2009

तुम कहां हो ?

मेरी हर इच्छा पर
दूध की तरह होंठों से लग जाने वाले पलों ?
धूलभरी किलकारियों से धूम मचाते हंसतेगाते ,
नौनिहाल कलों !
तुम कहां हो ?

गुलाबी रेशम सी हर पल फिसलती
बदन से लिपटी ,
मचलती ,
सुर्ख चेहरे से टपकती ,
लजाती हुई ,
धड़कनों में छुई मुई सी सकपकाती हुई-
अंधेरांे में भी दिखनेवाली राहों
दुखोंको प्यार से लड़ियाती बाहों ,
तुम कहां हो ?

धार ने बहते बहते जिसे छुआ था ,
उन बंजर पड़े खेतों में भी कुछ हुआ था ,
पनघट पर पंछीटे गए थे कितने चेहरे
किसी घाट पर कहां थे तब कोई पहरे ?
किनारों को डू आनक की वे अलमसत होड़ें ,
कभी हमने कभी तुमने जीती थी
हमारे हौसलों पर तब वह जो बीतती है
कहां बीती थी ?

हवा होते दिनों की लम्बी है यादें
प्रयासों के बावजूद अधूरे रह जाने की फरियादें
तुम कहां हो ?

तुम कहां हो जो कहते थे -
सब ठीक हो जाएगा
तुम कहां हो जिसे पता था
कि सुनहरा कल आएगा-
मोम की तरह हुई मशालों!
तुम कहां हो-
गरजती हुई दिशाओं ,
आकाश छूते उबालों

तुम कहां हो जहां से बिखरी थी यात्राएं
मैं अब भी खड़ा हूं उस मोड़ पर ,
उसी मोड़ पर जहां से मुड़ गया हे राजमार्ग
मुद्रिका होकर
अकस्मात रोके गये जुलूस को प्रतिबंध का झांसा देकर ,
लम्बीयात्राओं में गए अपने लोग ,
अब इधर नहीं आते
तुमकहां हो भोले क्षणों !
क्या इस मोड़ से कभी नहीं जाते ?
तुम कहां हो ?
तुम कहां हो ?